शिक्षा दिए की तरह होती है — हवा के तमाम झोंकों के बीच जब एक दीया जलता है, तो वही दीया फिर अनेक अन्य दीयों को जलने की प्रेरणा देता है और ये अनेक छोटे-छोटे दीए मिलकर पूरे संसार को जगमग कर देते हैं। हमारी आज की कहानी ऐसे ही एक दीए की है, जिसे बड़े परिश्रम से रौशन किया गया है और आज जब वह दीया जल रहा है, तो अनेक अन्य छोटे-छोटे दीयों को जगमगाने के लिए प्रेरित कर रहा है। यह कहानी है पश्चिम बंगाल के सुदूर भूटान बॉर्डर पर स्थित टोटो जनजातीय क्षेत्र टोटोपारा की एक युवा लड़की, अमीषा टोटो की। उनकी शैक्षिक यात्रा और लगातार संघर्षों के बाद भी हार न मानने की भावना कई युवाओं के लिए एक उदाहरण है।
![]() |
अमीषा टोटो |
अमीषा टोटो से हमारी मुलाकात विशेष थी। वर्ष 2023 में, अमीषा टोटो चित्तरंजन टोटो मेमोरियल एजुकेशन सेंटर से एक वोलेंटियर के तौर पर जुड़ी थीं। जब हम उसी वर्ष Tungthugkamu महोत्सव की तैयारी के सिलसिले में एजुकेशन सेंटर में थे, तब हमें अमीषा और अन्य युवा साथियों से काफी सहयोग मिला। संयोगवश, वर्ष 2024 के Tungthugkamu महोत्सव के दौरान हमारी अमीषा से पुनः मुलाकात हुई।
![]() |
अमीषा टोटो तुंथुंग्कामु के बुक फेयर में स्वेच्छापूर्वक सहयोग देते हुए |
![]() |
चित्तरंजन टोटो मेमोरियल एजुकेशन सेंटर में बच्चों द्वारा प्रातः सभा |
पांचवीं से दसवीं कक्षा तक अमीषा एक आवासीय विद्यालय में रहीं, जहां पढ़ाई तो बेहतर तरीके से हुई, लेकिन छोटी उम्र में परिवार से दूर रहने के कारण वह भावनात्मक असुरक्षा से जूझती रहीं और अपनी भावनाओं को साझा करने से कतराती थीं। ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश लेने के लिए अमीषा अलीपुरद्वार आईं और रेलवे पब्लिक स्कूल में दाखिला लिया। विषय चयन के सवाल पर अमीषा कहती हैं कि उनका विज्ञान विषय पढ़ने का मन था, लेकिन पारिवारिक दबाव के कारण उन्हें मानविकी विषय लेने पड़े। हालांकि अब उन्हें अपने विषय से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन यह तथ्य यह दर्शाता है कि दूरस्थ क्षेत्रों के विद्यार्थी, खासकर लड़कियां, अपने विषय चयन में अक्सर अभिभावकों की राय पर निर्भर रहती हैं, बजाय इसके कि उनकी खुद की रुचि क्या है। इसका एक कारण पारिवारिक आर्थिक स्थिति या विज्ञान के कठिन विषय होने की धारणा भी हो सकती है।
कोविड महामारी और उसके कारण लगे लॉकडाउन ने देश के मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया। अमीषा का परिवार भी इससे अछूता न था। वर्ष 2020 में, जब अमीषा बारहवीं कक्षा में थीं, वे अलीपुरद्वार में किराए के कमरे में अपने परिवार के साथ रह रही थीं। लॉकडाउन के दौरान उन्हें अपने गांव टोटोपारा लौटना पड़ा, लेकिन किराए का कमरा तब भी बरकरार रखना पड़ा, जिसके लिए उन्हें लगभग 15 हजार रुपए देने पड़े। यह उनके परिवार के लिए दोहरी मार जैसा था। लॉकडाउन के कारण आवाजाही पर रोक लगने से उनके पिता का व्यापार भी ठप पड़ गया और परिवार की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई। कठिन परिस्थितियों के बाद भी अमीषा ने बारहवीं कक्षा पास की और अपने पिता के हौसला देने के बाद स्नातक के लिए कूचबिहार के एक कॉलेज में दाखिला लिया। उनके पिता ने उस समय परिवार और अमीषा की पढ़ाई के लिए अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेच दिया, जिस पर उन्होंने काफी मेहनत से सुपारी के लगभग 1600 पेड़ लगाए थे।
अमीषा टोटो बच्चों के साथ |
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमीषा अपने गांव लौट आईं और समुदाय द्वारा संचालित विद्यालय में शिक्षण कार्य आरंभ किया। अमीषा दिन के लगभग 6 घंटे विद्यालय में शिक्षण कार्य करती हैं और इसके अतिरिक्त 5 घंटे गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं। उनके पिता वर्तमान में गंगटोक में कार्यरत हैं ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधार सकें, जबकि अमीषा अपनी मां के साथ गांव में रहकर बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए तत्पर हैं।
अमीषा सरकारी सेवा में जाना चाहती हैं ताकि वह अपने परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकें। उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देने के बाद हम महोत्सव के कार्यक्रमों के लिए प्रस्थान करते हैं, लेकिन कुछ सवाल जरूर हमारे जेहन में रह जाते हैं — अमीषा टोटो जैसे अनेक युवा, जो सिर्फ आर्थिक पिछड़ेपन के कारण इच्छित शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं, ऐसे युवा परिवार को आर्थिक सहारा देने के लिए अपनी उम्र से पहले ही बड़े होने लगते हैं।
No comments:
Post a Comment